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कला प्रशंसा
एक पुरुष थकावट और उदासी के भाव के साथ बिस्तर पर लेटा हुआ है, जो एक सादा कंबल से ढका हुआ है। उसकी ढीली सफेद कमीज़ कमरे के गहरे भूरे और मिट्टी के रंगों से एक विशेष प्रकाश में चमकती है। फर्श पर बिखरे कागज उसके असमाप्त कार्य या विचारों को दर्शाते हैं। पीछे हरे पर्दे के बीच से दो व्यक्ति लोहे की सलाखों越 से उसे देख रहे हैं, जो कैद और निरीक्षण की भावना को बढ़ाते हैं।
चित्रकार की ब्रश की हल्की व लचीली चालन कला और उजाला-छाया का संतुलन इस मानसिक द्वंद्व को बखूबी दर्शाता है। यह रचना 19वीं सदी के मानसिक अस्पताल के कठोर परिवेश में अकेलेपन और मानसिक तनाव की गहराई को महसूस कराती है। प्रकाश और छाया का खेल मनोदशाओं के रंगों को और भी अधिक प्रभावशाली बनाता है।